बुधवार, 14 नवंबर 2007

पापा

पापा आई तुम्हारी याद, बहुत मैं तन्हा हूँ,
फिर से सालों बाद, बहुत मैं तन्हा हूँ।
जिन काँधों पर बचपन ढ़ोया पाला पोसा,
वो नही हैं मेरे पास, बहुत मैं तन्हा हूँ।
फिर से सालों बाद ...
जिसकी गोदी में सर रखकर मैं रो लूं,
वो पिता नही हैं पास, बहुत मैं तन्हा हूँ।
हर वक्त दौडते, जीवन के तूफानों में,
है 'तेज' की धूंधली याद, बहुत मैं तन्हा हूँ।
फिर से सालों बाद ...
राहें भी हैं मंजिल भी और जज्बा भी,
है वक्त भी मेरे साथ मगर मैं तन्हा है।
वो 'प्रकृति' जिसको ढूंढ रहा था मैं अब तक,
है 'संयोग' से मेरे साथ मगर में तन्हा हूँ।
फिर से सालों बाद ...

3 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर! पिता की याद में लिखी यह रचना मन को छू गई।....हमे भी भूली -बिसरी यादें फिर कुरेद गई।

बेनामी ने कहा…

AAPKO NAYE WARSH KI SHUBHKAMNAYEN

रवि रावत "ऋषि" ने कहा…

bahut khub, kya likha hai aapne. main khud bhi likhata hoon par aapki is kavita ki tareef main mere paas shabd nahin hain...