क्यूँ जाते हो परदेश पिया, मेरी मानो, रूक जाओ ना।
है शाम ढली, पँछी गाते, तुम भी कोई गीत सुनाओ ना।
जीवन तो यूँही चलता है, सूरज भी हर दिन ढलता है।
कल शाम ढलेगी चल देना, अभी बाहों में आ जाओ ना।।
क्यूँ जाते हो परदेश पिया...
मैं रात-रात भर सोई नही, तेरे ही स्वपन सजाती थी।
हर रोज मचलती मिलने को, पर आह ना लब पे लाती थी।
हैं बहुत परीक्षा दी मैंने, अब और मुझे आजमाओ ना।
तुम छोड चले तो रो दूँगी, सच कहती हूँ, तडपाओ ना।।
क्यूँ जाते हो परदेश पिया...
हर रोज मचलती मिलने को, पर आह ना लब पे लाती थी।
हैं बहुत परीक्षा दी मैंने, अब और मुझे आजमाओ ना।
तुम छोड चले तो रो दूँगी, सच कहती हूँ, तडपाओ ना।।
क्यूँ जाते हो परदेश पिया...
मुड कर देखो इन आँखो से, अश्रू की धारा बहती है।
ये व्यर्थ रेत में गिरती है, तुम गागर भर ले जाओ ना।
मैं यहाँ तडपती निर्जन में, तुम वहाँ अकेले रहते हो।
तन्हा जीना अब मुश्किल है, मुझको भी संग ले जाओ ना।।
क्यूँ जाते हो परदेश पिया...
ये व्यर्थ रेत में गिरती है, तुम गागर भर ले जाओ ना।
मैं यहाँ तडपती निर्जन में, तुम वहाँ अकेले रहते हो।
तन्हा जीना अब मुश्किल है, मुझको भी संग ले जाओ ना।।
क्यूँ जाते हो परदेश पिया...
मैं देख रही तुम दु्ःखित हुए, बेमन ही बढते जाते हो।
है बहुत कंटीला ये रस्ता, कहकर तुम मुझे डराते हो।
पर सच जानो, कल-कल करते, झरनों से उदित संगीत हूँ मैं।
पत्थर का सीना चीरा है, कांटों से मुझे डराओ ना।।
क्यूँ जाते हो परदेश पिया...
है बहुत कंटीला ये रस्ता, कहकर तुम मुझे डराते हो।
पर सच जानो, कल-कल करते, झरनों से उदित संगीत हूँ मैं।
पत्थर का सीना चीरा है, कांटों से मुझे डराओ ना।।
क्यूँ जाते हो परदेश पिया...
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