शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

एक कविता तेरे नाम

मैं लिखुँ कविता नाम तेरे, ऐसा तुम मुझसे कहती हो।
क्या लिखुँ तुम्हे, तुम कौन मेरी, तुम कहाँ जमीं पर रहती हो !
तुम तो रहती मेरे दिल में, ज्यों गंध हवा में रहती है।
हो तुम ही मेरा जीवन अब, दिल की हर धडकन कहती है।
तुम ही तो हो "संगीत" मेरा, साँसो में तुम ही रहती हो।
हैं आँखो में सपने तेरे ही, तुम ही अश्रू बन बहती हो।
तुम मन में तो, तुम तन में हो, तुम ही हो मेरे जीवन में।
तुम यादों में, तुम बातों में, तुम ही हो अब हर धडकन में।
तुम यार मेरे, तुम प्यार मेरे, तुम जन्मो से दिलदार मेरे।
ये कैसा अजब "संयोग" हो तुम, हो दूर मगर "संग" रहते हो।
मैं लिखुँ कविता नाम तेरे...

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